Sunday, January 13, 2013

वो सीन कुछ अजीब थी....

"में तुम्हारे बच्चे की माँ बनने बाली हूँ!!

ये शब्द मानो बम की तरह फटता था सिनिमा हाल में. वो एक दौर था जब हाल में उपस्थित हरेक दर्शक भौच्चके हो के फिल्मी नायिका को घूरता था जब वो इस तरह की सनसनीखेज रहस्य अपने हीरो पे प्रगट करती थी. दर्शक दीर्घा में मौजूद हरेक प्राणी बस मानो इसी सस्पेनस पे लगा था की हीरो क्या करेगा और उधर हीरो की फटी पड़ी रहती थी. वो अवाक सा होके या तो कुछ देर तक बोलता नही था या फिर एक ही डाइलॉग "में क्या करूँ? मेरे माँ-बाप शादी के राज़ी नही होंगे" या फिर जो जिगर बाला  था "चलो शादी कर लेते हैं. जो होगा देखा जाएगा."

खैर दर्शक दीर्घा में मौजूद कुछ लोग एसे भी थे जो हैरान थे की  अब हेरोइन क्या करेगी. मतलब, लोग खुद को उससे रिलेट कर लेते थे मानो ये उनका निज़ी मामला हो. कुछ तो तैश में आकर ये भी बोलते थे, "थप्पड़ मार साले को!" तो कुछ ये भी "क्या जमाना आ गया हैं! शादी से पहले ही!! राम! राम! राम! में तो इसलिए अपनी बिटिया को कभी घर से बाहर निकलने ही नहीं दिया."

जहा बुजुर्ग दर्शक हैरान और रोष में दिखे वही कुछ नवयुवक ने ये कमेंट भी पास किया "माँ कसम! मिल जाए तो साले को फाड़ डालूं!" तो वही कुछ लोग - "चलो जाने भी दो यार! पिक्चर का दी एंड अभी बहुक बाकी हैं. देखो शायद लड़का शराफ़त दिखा के उसे कबूल लें!!"

एक नवयुवक तैश में जैसे ही खड़ा हुआ पीछे से किसी ने आवाज़ दी "बैठ जा भाई! सब फिल्मी ड्रामा हैं. तू क्यों अंडे की तरह उबल रहा हैं! बैठ जा!"

घर आने के बाद चाचाजी - "सुनती हो सीमा की माँ! जमाना ठीक नही हैं. कहा गयी लाडली तुम्हारी?" चाचीज़ी - क्यों हर वक्त मेरी बेटी की पीछे पड़े रहते हो? कोई और कIम नही आपके पास?" "अरे भगवान! में तो बस यू ही....! खैर जाने दो! तुम्हे पता हैं आज फिल्म में क्या दिखाया....और फिर वो पूरी स्टोरी चाचीज़ी को सुना देते! "हाय राम! कैसे कैसे इंसान हैं इस दुनिया में. प्यार के नाम पे ये कुकर्म! छी!" गुस्से में चाचीज़ी लगीं चिल्लाने.

उधर परोस के रहमत चाचा अपनी बेगम जी से पूछे की रज़िया (उनकी बेटी) कहा हैं! ये जानकार की घर में पढ़ाई कर रही हैं, उन्होने चैन की सांस ली.

उधर कुछ दोस्त आपस में - "सुधीर! तुम वहाँ होते तो क्या करते?" सुधीर - कहाँ ? उस पिक्चर में? अरे में तो शादी के लिए तुरंत हा बोल देता. इतनी सुंदर लड़की मेरे नाशिब में कहा मिलेगी!" तभी दिनेश ने कमेंट किया- हाँ साले! तेरी उमर देख के तो यही लगता हैं"! ...और फिर कुछ देर तक क़हक़हे का शोर....

आज सभ कुछ मानो बदल सा गया हैं. एक लड़की सरेआम बैज़्जत की जाती हैं और हम सब कुछ देर के लिए हाय तौबा मचाके शांत हो जाते हैं. फिल्मी चीज़ें हक़ीकत और हक़ीकत शायद फिल्मी बनती जा रही हैं...जहा क्लॅसिकल फिल्में जनमानस को सोचने पे मजबूर करते थी वही आज की फिल्में उत्तेजित करने में. किसी को कोई परवाह नही. गिने चुने को छोड़, आज की फिल्में परिवार तो क्या खुद के साथ भी देखने के काबिल नही.

पवन कुमार

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